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सर्वे में 10 में से 8 भारतीय बोले- हमें आस-पास स्नैक्स के रैपर-प्लास्टिक बोतलें दिखती हैं

सर्वे में 10 में से 8 भारतीय बोले- हमें आस-पास स्नैक्स के रैपर-प्लास्टिक बोतलें दिखती हैं

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2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत के 10 साल पूरे हो रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंति पर इस अभियान की शुरुआत की थी. जहां एक ओर मोदी सरकार इस मिशन के 10 साल पूरे होने पर जश्न मना रही है, वही दूसरी ओर लोगों का मानना है कि स्नैक्स, बिस्किट समेत तमाम पैकेजिंग प्रोडक्ट्स में प्लास्टिक के निरंतर इस्तेमाल के खिलाफ और अधिक कार्रवाई के पक्ष में हैं. दरअसल, आम नागरिकों द्वारा चिप्स, बिस्किट, स्नैक्स, नमकीन के रैपर्स को इस्तेमाल के बाद यहां वहां फेंक देते हैं, इससे नालियां जाम हो जाती हैं. इतना ही नहीं इन्हें रीसायकल करना भी कठिन है. ऐसे में इनसे लगातार प्रदूषण में इजाफा हो रहा है. 

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक कचरे को लेकर 12 अगस्त 2021 को प्रबंधन संशोधन नियम भी अधिसूचित किया था. इसमें कैरी बैग, प्लास्टिक स्टिक्स, पैकेजिंग-रैपिंग फिल्म, कटलरी आइटम, पीवीसी बैनर, प्लास्टिक झंडे, प्लास्टिक शीट और पान मसाला पैकेट में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक की बात कही गई थी. हालांकि, यह राज्य सरकार और स्टेट पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड के अधीन आता है, ऐसे में यह पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया. 

इन सबके बीच LocalCircles ने देशभर में एक सर्वे किया है. इस सर्वे में देश के 305 जिलों के 22000 लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें से 68 प्रतिशत पुरुष और बाकी महिलाएं थीं. इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों में 46 प्रतिशत टियर-1 के, 33 प्रतिशत लोग टियर 2 और 21 प्रतिशत लोग टियर-3 और टियर 4 जिलों के शामिल थे. 

सर्वे में सबसे पहला सवाल किया गया, लोग आम तौर पर सड़कों-फुटपाथों पर कौन-कौन से फूड पैकेजिंग रैपर देखते हैं. इस सवाल का 11,470 लोगों ने जवाब दिया. इनमें से कुछ ने एक से अधिक चीजों को बताया.
–  86% लोगों ने कहा कि उन्हें सड़क और फुटपाथ पर चिप्स, नमकीन, कैंडी और बिस्किट के रैपर दिखते हैं. 
– अन्य 86% लोगों ने पानी, कोल्डड्रिंक्स, जूस की प्लास्टिक की बोतलें बताईं.
–  77% लोगों ने विभिन्न ड्रिंक्स के पॉली पैक दिखने की बात कही.
– 68% लोगों ने कहा कि उन्हें सड़क और फुटपाथ पर गुटखा-पान मसाला और सिगरेट के डिब्बों के रैपर दिखते हैं. 
– जबकि 45% ने डेयरी उत्पादों (दूध, दही, आदि) के पैकेट नजर आने की बात कही. 
– 14% ने अन्य उत्पाद बताए.
– जबकि सिर्फ 14% लोग ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि वे जहां रहते हैं, वहां उन्हें सड़कों पर ऐसा कुछ नहीं दिखता. 
– इस सर्वे से साफ होता है कि ज्यादातर भारतीयों को सड़क और फुटपाथ पर चिप्स, नमकीन, कैंडीज, बिस्कुट के रैपर और पानी- कोल्डड्रिक्स की प्लास्टिक बोतलों को आम तौर पर देखा जाता है. 

कैसी हो फूड प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग?

सर्वे में शामिल 10 में से 8 भारतीयों का कहना है कि सरकार सभी पैकेज्ड के लिए ये अनिवार्य कर दे कि फूड प्रोडक्ट्स की ऐसी पैकेजिंग हो जो रीसायकल हो सके. 

सर्वे में लोगों से आगे पूछा गया, “क्या 2025 तक भारत को सभी खाद्य पदार्थों के लिए इसकी पैकेजिंग रीसायकल, बायोडिग्रेडेबल या दोबारा इस्तेमाल हो सकने योग्य अनिवार्य कर देनी चाहिए. इस सवाल का जवाब 19,890 लोगों ने दिया. इनमें से 80 प्रतिशत लोगों ने हां कहा. 

हालांकि, 12% उत्तरदाताओं ने कहा कि 2025 की समय सीमा व्यावहारिक नहीं है. जबकि 4% लोगों को यह विचार ही बुरा लगा. यानी सर्वे में साफ होता है कि 10 में से 8 भारतीय चाहते हैं कि सरकार सभी खाद्य पदार्थों के लिए इसकी पैकेजिंग रीसायकल, बायोडिग्रेडेबल या दोबारा इस्तेमाल हो सकने योग्य अनिवार्य कर दे. 

ये सर्वे LocalCircles ने किया है…



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